What is Inflation in Hindi मुद्रास्फीति (Inflation) क्या है ?

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हेलो दोस्तों आज मैं आपको Inflation In Hindi से जुड़ी सारी जानकारी हिंदी में बताने वाला हूँ ( Inflation in Hindi or What is Inflation Meaning in Hindi) तो चलिए सबसे पहले ये जानते है की inflation क्या है।

आप कभी कभी सोचते होंगे की जो 1kg चीनी आज के 10 साल पहले सिर्फ 20rs में मिलता थी वही 1kg  चीनी आज लगभग rs45-50 तक मिलती है तो ऐसा सिर्फ इसलिए होता  है।

क्योकि हमारे करेंसी की वैल्यू कम होती जा रही है जिसकी वजह से पहले से ज्यादा पैसे देने पे भी आपको पहले जितंना सामान ही मिलता है ऐसा सिर्फ inflation या मुद्रास्फीति के वजह से होता है।

तो आइये जानते है Inflation क्या है और ये किन कारणों के वजह से निरंतर बढती है और हम ऐसा इसको कम करने के उपाय क्या है।

What is inflation in hindi मुद्राशिफति (inflation) क्या है

Inflation का अर्थ क्या होता है :-किसी भी देश की currency  की value में लगातार गिरावट को ही मुद्रास्फीति (inflation) कहा जाता है 

सरल सब्दो में  इसका मतलब  यह होता की उस देश में currency की supply उस देश की वस्तुओ की demand से अधिक हो जाती है जिसके कारण उस देश में वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होती रहती है जो उस देश में महंगाई (inflation) को जन्म देती है 

Inflation का लगातार बढ़ना उस देश की सरकार के लिए एक बहुत ही गंभीर समस्या है क्योकि महंगाई का लगातार बढ़ना उस देश जी सरकार की कार्य प्रणाली पर एक बहुत बड़ा धब्बा भी साबित हो सकती है।

देश में अत्यधिक महंगाई हानिकारक सिद्ध हो सकती है तो आइये जानते है की आखिर क्यों और किन वजहो से inflation इतनी तेजी से बढ़ता जाता है।

Causes(कारण) of inflation in Hindi मुद्रास्फीति के कारण 

देश की महंगाई से निपटने क लिए पहले हमे उसके कारणों को जानना जरुरी है जिन में से कुछ मुख्य कारणों को मैंने निचे बताया है जिससे आप जान सकते है की आखिर क्यों हमें महंगाई की इस अदृस्य मार को सहना पड़ता है।

Inflation बढ़ने के दो कारण है

1.माँग कारक मुद्रास्फीति (demand pull)

जब किसी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं या सेवाओं की मांग (demand) में होती है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में इजाफा होने लगता है ,जिसे हम मांग कारक मुद्रास्फीति (demand pull inflation) कहते है |ये निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न हो सकती है जैसे की;-

  • तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था (GROWING ECONOMY):- जब देश के नागरिको में आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उन्हें लगता है की सरकार देश के भावी भविष्य के लिए उच्चतम प्रयास कर रही है तो उन्हें भविष्य में उनके वेतनों में वृद्धि की उम्मीद बढ़ती है या होम लोन या credit  मिलने में आसानी की उम्मीद होती है तो वे अपने और अपने परिवार की जरूरतों पे अधिक व्यय करना शुरू कर देते है| जो देश में वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि कर देता है जो एक क्रमिक और स्थिर मुद्रास्फीति को बढ़ावा  है।
  • नयी बेहतरीन तकनीक :-जब कोई कंपनी किसी देश की अर्थवयवस्था में कोई नयी तकनीक लाती है जो उस देश के नागरिकों क जीवन को सरल और सुगम बनती है या फिर उनके मनोरंजन को बढ़ावा देती है तो उस तकनीक के के नए होने के  कारण  हर व्यक्ति उसे खरीदने को इच्छा व्यक्त करता है जो की उस तकनीक के प्रति अत्यधिक मांग उत्तपन्न करता है जब तक उस तकनीक को कुछ और कम्पनिया copy  न कर ले | मांग अधिक होने से पूर्ति में कमी आती है जो मुद्रास्फीति को बढ़ावा देता है | जैसे की इंडिया में मेट्रो का आना जो की एक बिलकुल नई तकनीक थी और इंसानी जीवन को सुगम बी बना रही थी जिससे जिससे उसकी बढ़ती कीमत बी लोगो को उसकी मांग कम नहीं करा पाई।
  • लुभावित या मजबूत ब्रांडिंग :-यदि किसी प्रोडक्ट की एक मजबूत या भावनात्मक मार्केटिंग की जाए तो वह उस प्रोडक्ट्स के लिए अतयधिक मांग को बढ़ावा देगा जो परिसंम्पत्ति मुद्रास्फीति (asset inflation) का एक भाग है| उदाहरण APPLE कंपनी के iphone के नए variants जो की मजबूत ब्रांडिंग का उच्चत्तंम उदहारण हो सकता है।
  • मुद्रास्फीति की उम्मीदें :-जब अर्थव्यवस्था में लोगो को मुद्रास्फीति की उमीदें होने लगती है तब लोग भविष्य में बढ़ती कीमतों से बचने के लिए अपनी हैसियत अनुसार हर कोई अभी सामान या वस्तुओ को स्टोर करने लगता है जिससे की मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलने लगता है जैसा की 2020 में हुआ लोगो ने यह अनुमान लगा लिए की इस कोरोना संकट के पश्चात महंगाई में वृद्धि हो सक्तोई है जिससे की लोखड़ौन जैसी समस्या से निपटने क लिए लोगो ने जरुरी सामानो का भण्डारण शुरू कर दिए जिससे की वस्तुओ के लिए मांग में वृद्धि हुई जिससे उस वर्ष 2020 में इंडिया का इन्फैशन रेट 4.72 से बढ़कर 6.2 चला गया।
  • मुद्रा आपूर्ति :-मुद्रा आपूर्ति या मुद्रा अतिविस्तार जैसी स्थिति तब उभर कर सामने आती है जब देश की सरकार अधिक से अधिक CURRENCY छपने पे जोर देती है जिसकी वजह से देश में मुद्रा की पूर्ति वास्तविक मांग से अधिक हो जाती है जो मुद्रास्फीति या फिर कहे की अति-मुद्रास्फीति जैसी समस्या उत्तपन्न क्र देती है।

2.मूल्य वृद्धि कारक (cost push)

मूल्य वृद्धि मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था में तब उत्तपन्न होती है जब श्रम ,कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुओं में कमी आने के कारण उनके लागत में वृद्धि होने लगती हैं | ऐसा तब होता जब तक अर्थव्यवस्था में मांग सामान रहती और कीमतों में वृद्धि होने लगती है।

  • वस्तुओं की कीमत में वृद्धि :-जब कच्चे माल या तेल की कीमतों में वृद्धि होने लगती है तो पेट्रोल या डीज़ल की कीमते बढ़ने लगती है जो परिवहन लगत के रूप में फर्मो की उत्तपादन लागत को बढ़ाता है। उत्तपादन लगत में वृद्धि क फलस्वरूप वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है जो की मूल्यवृद्धि मुद्रास्फीति को बढ़ावा देता है।
  • एकाधिकार :-जब कोई भी कंपनी या कंपनियां आपस में मिलकर किसी वास्तु या सेवा के लिए एकाधिकार (monopoly) को हांसिल करके मूल्य वृद्धि मुद्रास्फीति को जन्म देती हैं | जिसे लाभ पुश मुद्रास्फीति भी कहते है। ये कंपनियां आपस में संगठन बना के अपने लाभ क लिए कई बार वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति को कम कर देते है जिससे की मांग बढ़ने से कीमतों में वृद्धि की जा सके। जैसे इंडियन रेलवे या इंडियन मेट्रो जैसी बड़ी कंपनियां एकाधिकार स्थापित करके मूल्यवृद्धि मुद्रास्फीति को जन्म देती है जैसे की मेट्रो ने फ़िलहाल ही अपने किराये को लगभग 2 गुना कर दिए था। 
  • प्राकृतिक आपदाएं :-कई बार बड़ी प्राकर्तिक आपदाएं वस्तुओ और सेवाओं की आपूर्ति को बाधित करती है जिससे की मुद्रास्फीति में एक अच्छा उछाल देखने को मिलता है। जैसे बड़े बड़े तूफ़ान तेल की बड़ी बड़ी refineries को बर्बाद क्र देते है जिससे की तेल की कीमतों में अचानक से वृद्धि दिखाई देती है उदहारण :जापान का कटरीना तूफ़ान जिसने जापान की बड़ी refineries को बर्बाद क्र दिए था जिसके तुरंत बाद वह की तेल और पेट्रोल की कीमतों में बड़ा उछाल देखा गया था।    
  • ज्यादा पगार :-बढ़ती मजदूरी उत्पादन लागत को बढ़ाएगी जिससे कीमतों में वृद्धि होगी और मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा। ज्यादा पगार मिलने से लोग वस्तुओ की मांग भी ज्यादा करने लगते है इसलिए ये एक बहुत बड़ा करद है मुद्रास्फीति के बढ़ने का 
  • अधिक कर :-जब देश की अर्थव्यवस्था में कर की प्रतिसत में अधिक वृद्धि होने लगती है तो फर्मो की उत्पादन लागत में भी वृद्धि होती है जो एक अस्थाई मुद्रास्फीति को जन्म देने लगती है | क्योकि जितना ज्यादा क्र होगा उतना अधिक कीमत में वस्तुए बाजार में आएँगी     

Effects of inflation in hindi(मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार  के प्रभाव)

महंगाई  के प्रभाव सकारात्मक और नकारत्मक दोनों प्रकार के हो सकते है क्योकि मुद्रास्फीति अलग अलग लोगो या वर्गों को अलग अलग ढंग से प्रभावित करती है ,तो इसलिए आइए जानते है।

 मुद्रास्फीति के सकारात्मक प्रभाव (positive effect of inflation) 

  • इनके उत्पादक वर्गों जैसे-कृषक ,उद्योगपति और व्यापारिओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है क्योकि वे कीमते बढ़ने से बेहतर लाभ का अनुभव करते है और अपने उत्पाद को अधिक कीमतों पर बेच सकते है।
  • मुद्रास्फीति की बढ़त के दौरान निवेशक हो या उद्योपति दोनों को  उत्पादन गतिविधिओ में निवेश करने को प्रोत्साहन मिलता है जिससे की वे भावी भविष्य में एक अच्छा return प्राप्त कर सकते हैं।
  • इसके कारण मुद्रा की वैल्यू गिरने लगती है जिससे मुद्रा की मूल्य में कमी आती है जिसका बहुत बड़ा फायदा कर्जदारों या लेनकर्ता को होता है।
  • मुद्रास्फीति उत्पादन और सेवाओ की वृद्धि को भी बढ़ावक देता है क्योकि उद्योगपतिओं को निवेश मिलने से वे ज्यादा सामान और सेवाएं खरीदने को इच्छुक रहते है।
  • चूँकि उत्पादन में बढ़ोतरी होती है जिससे ये रोजगार के नए अवसर लाती है और मजदूरों की आय में भी वृद्धि करती है।

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मुद्रास्फीति क नकारात्मक प्रभाव(negative effect of inflation)   

  •  शहरी छेत्र के लोगो को ग्रामीण छेत्र के लोगो के मुकाबले मुद्रास्फीति से  अधिक प्रभाव पड़ता है क्योकि ग्रामीण छेत्र में लोगो को जरुरी सामान जैसे खाने पिने की अधिकतर चीजो के लिए खर्च कम करना पड़ता है क्योकि अधिकतर चीजे खेतो से उपज जाती है जबकि शहरी छेत्र के लोगो को हर चिज के लिए व्यय करना पड़ता है।
  •  निश्चित आय के लोग जैसे वेतनभोगी और पेंशनभोगी पर मुद्रास्फीति का सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योकि उनकी आय व्ही रहती है और उनकी क्रय शक्ति कम हो जाती है।
  • पूंजी संचय पर मुद्रास्फीति का सीधा हानिकारक प्रभाव पड़ता है क्योकि भविष्य में पेसो का मूल्य गिर जाएगा इसलिए लोग वर्तमान में उपभोग को बढ़ा देते है और धन को संचय करने क बजाय लोग उससे भावी भविष्य में लाभकारी होने वाली चीजे खरीदते है।
  • कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने के कारण वस्तुओ की कीमतों और उत्पादन के कारको में वृद्धि होती है जिससे निर्यात  वस्तुओं की कीमते बढ़ती है। जिसके कारण विदेशो में निर्यात वस्तुओ की मांग कम हो जाती है जिससे मुद्रास्फीति के दौरान निर्यात वस्तुओ की आय कम हो जाती हैं। 

What is inflation rate meaning in Hindi (inflation rate क्या है) 

मुद्रा स्फीति को मापने का सामान्य तरीका होता है मुद्रास्फीति दर जो मुद्रा के अवमूल्यन (devaluation)को मापने का एक सुगम तरीका है। 

मुद्रास्फीति दर वह प्रतिशत है जिससे उत्पादों की तुलना में मुद्रा या पैसा अपनी मूल्य या value खोने का पता चलता है।जैसे जैसे उत्पाद समूह महंगे होता जाते है और पैसे की वैल्यू कम होती है वैसे वैसे मुद्रास्फती दर बढ़ती रहती है | 

दूसरे शब्दों में यह वह दर है जिसमे मुद्रा का अवमूल्यन प्रतिशत दर और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में प्रतिशत परिवर्तन एक सापेक्ष रूप से चल रही हो।

Inflation rate define with example in Hindi (मुद्रास्फीति दर उदाहरण )    

विभिन्न उपायों के माध्यम से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना

मुद्रास्फीति के प्रबंधन के लिए नियोजित कई उपायों (जैसा कि चित्र-5 में दिखाया गया है) की चर्चा नीचे की गई है।

  1. मौद्रिक नीति:

आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रण में रखने के लिए, एक देश की सरकार कई तरह की नीतियों और प्रक्रियाओं को लागू करती है। सरकार के लिए मुद्रास्फीति का प्रबंधन करने के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक मौद्रिक नीति के माध्यम से है।

केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीति के हिस्से के रूप में वाणिज्यिक बैंक उधार पर ब्याज दर बढ़ाता है। नतीजतन, वाणिज्यिक बैंक उपभोक्ता ऋण पर अपनी ब्याज दरें बढ़ाते हैं। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति नए व्यवसायों में संलग्न होने के बजाय धन को संरक्षित करना चुनते हैं।

यह बाजार की मुद्रा आपूर्ति को सीमित करेगा, जिससे मुद्रास्फीति पर अंकुश लगेगा। इसके अलावा, केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए वाणिज्यिक बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता को प्रतिबंधित करता है।

एक देश की मौद्रिक नीति में निम्नलिखित शामिल हैं

ए) बैंक दर में वृद्धि:

मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा नियोजित सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले उपकरणों में से एक।

बैंक दर वह ब्याज दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण और अग्रिमों की पुनर्भुनाई करता है। जब बैंक दर बढ़ती है, तो सामान्य आबादी के लिए ऋण पर ब्याज की दर भी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों का कुल खर्च कम हो जाता है।

व्यक्तिगत व्यय में कटौती के प्राथमिक कारण निम्नलिखित हैं:

मैं पैसे उधार लेने की लागत बढ़ा रहा हूं:

इस तथ्य को संदर्भित करता है कि जब केंद्रीय बैंक बैंक दर बढ़ाता है, तो वाणिज्यिक बैंक ऋण और अग्रिम पर ब्याज दर भी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप आम जनता के लिए उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है।

नतीजतन, कई लोग अपनी निवेश योजनाओं को स्थगित कर देते हैं और भविष्य में ब्याज दरों में गिरावट का इंतजार करते हैं। कम निवेश के परिणामस्वरूप समग्र व्यय कम होता है, जो मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद करता है।

(ii) फर्मों को बुरी स्थिति में डालना:

अनुमान है कि बैंक दर में वृद्धि का कुछ व्यवसायियों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। उनका मानना ​​है कि मौजूदा स्थिति व्यापार करने की उनकी क्षमता के लिए हानिकारक है। नतीजतन, उन्होंने अपने खर्च और निवेश में कटौती की।

(iii) बचत की संभावना बढ़ाना:

लोगों के कुल खर्च में कटौती के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक। यह एक सर्वविदित सत्य है कि लोग मुद्रास्फीति के दौर में पैसे बचाना पसंद करते हैं। परिणामस्वरूप, उपभोग और निवेश पर व्यक्तियों का समग्र व्यय गिर जाता है।

(ए) प्रत्यक्ष ऋण निर्माण नियंत्रण: यह मौद्रिक नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।
केंद्रीय बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों की ऋण नियंत्रण क्षमता को सीधे कम करने के लिए निम्नलिखित उपायों का उपयोग किया जाता है:

मैं ओएमओ (ओपन मार्केट ऑपरेशंस) कर रहा हूं:

वाणिज्यिक बैंकों की ऋण निर्माण क्षमताओं को प्रतिबंधित करने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा नियोजित सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक। वाणिज्यिक बैंकों और कुछ निजी उद्यमों को केंद्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियां जारी की जाती हैं।

वाणिज्यिक बैंकों के पैसे का इस्तेमाल इस तरह से सरकारी संपत्ति खरीदने के लिए किया जाएगा। नतीजतन, वाणिज्यिक बैंक आम जनता के लिए उपलब्ध ऋण की मात्रा को कम कर देंगे।

(ii) रिजर्व अनुपात बदलना: वाणिज्यिक बैंकों की ऋण सृजन क्षमता को प्रतिबंधित करने के लिए रिजर्व अनुपात को बढ़ाने या घटाने के लिए केंद्रीय बैंक शामिल है। जब केंद्रीय बैंक को वाणिज्यिक बैंकों की ऋण निर्माण क्षमताओं को प्रतिबंधित करना होता है, तो यह नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बढ़ाता है। नतीजतन, वाणिज्यिक बैंकों को रिजर्व के रूप में केंद्रीय बैंक के पास अपनी कुल जमा राशि का एक बड़ा हिस्सा अलग रखना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप वाणिज्यिक बैंकों की ऋण देने की क्षमता और कम हो जाएगी। नतीजतन, एक अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत निवेश कम हो जाएगा।

  1. राजकोषीय नीतियां:

मौद्रिक नीति के अलावा, सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए राजकोषीय उपाय करती है। सरकारी राजस्व और सरकारी व्यय राजकोषीय नीति के दो प्राथमिक घटक हैं। सरकार निजी खर्च को कम करके, सरकारी व्यय में कटौती करके या दोनों को मिलाकर राजकोषीय नीति के माध्यम से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करती है।

निजी उद्यमों पर कर बढ़ाकर, यह निजी व्यय को कम करता है। जब निजी खर्च बढ़ता है, तो सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए अपने खर्चों में कटौती करती है। हालाँकि, वर्तमान स्थिति को देखते हुए, सरकारी खर्च में कटौती करना असंभव है क्योंकि चल रहे सामाजिक कल्याण कार्यक्रम हो सकते हैं जिन्हें स्थगित किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, सैन्य, स्वास्थ्य, शिक्षा और कानून व्यवस्था जैसे अन्य क्षेत्रों में सरकारी खर्च की आवश्यकता होती है। ऐसे में सरकारी खर्चों में कटौती करने के बजाय निजी खर्च में कटौती करना बेहतर विकल्प है। जब सरकार करों को बढ़ाकर निजी खर्च को कम करती है तो व्यक्ति अपना कुल खर्च कम कर देते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि मुनाफे पर प्रत्यक्ष करों में वृद्धि होती है, तो कुल प्रयोज्य आय में कमी आएगी। नतीजतन, लोगों का कुल खर्च गिर जाता है, जिससे बाजार में मुद्रा आपूर्ति कम हो जाती है। नतीजतन, जैसे-जैसे मुद्रास्फीति बढ़ती है, सरकार खर्चों में कटौती करती है

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